Wednesday, 26 August 2015

उत्तर गुप्त राजवंश और मालवा

प्रस्तुत आलेख का उद्देश्य छठी सदी ईस्वी के उत्तर भारत के प्रमुख उत्तर गुप्त राजवंशका एक संक्षिप्त, सरल एवं प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत करना है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इस कालखण्ड में भारत में बहुसंख्यक छोटे-बड़े राज्यों का उदय और अस्त देखने को मिलता है। इनमें कुछ ने तो सम्पूर्ण भारत की तत्कालीन राजनीति को न्यूनाधिक रूप से प्रभावित किया जबकि अधिकांश स्थानीय राजवंश एक सीमित परिक्षेत्र में ही उत्थित हुए और विलीन हो गये। गुप्तोत्तर कालीन भारतीय इतिहास अनेक नवीन प्रवृत्तियों संक्रमण का काल...
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मौर्योंत्तर काल

शुंग काल  शुङ्ग वंश मौर्य वंश के पश्चात का राजवंश हैं। हर्षचरित व पुराणों से पता चलता है कि सेनापति पुष्यमित्र ने अपने अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या कर शुंग वंश की स्थापना की।पुष्यमित्र का साम्राज्य दक्षिण में नर्मदा तक फैला हुआ था तथा विदिशा उसके राज्य का एक प्रमुख नगर था। “मालविकाग्निमित्रम’ के अनुसार पुष्यमित्र वे शासन काल में उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा में गोप्तु (उपराजा) के रुप में शासन का संचालन करता था। अग्निमित्र ने विदर्भ के शासक यज्ञसेन के साथ युद्ध करके विदर्भ...
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बौद्ध धर्म

जीवन परिचय -गौतम बुद्ध नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान है। वहाँ एक लुम्बिनी नाम का वन था। गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले जब कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी अपने नैहर देवदह जा रही थीं, तो रास्ते में लुम्बिनी वन में हुआ। तब इनका नाम सिद्धार्थ रखा गया। इनके पिता का नाम शुद्धोदन था। जन्म के सात दिन बाद ही माँ...
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प्राचीन भारत की जटिल सामाजिक प्रक्रिया

लगभग 600 ई-पू- से 600 ईसवी तक के मध्य आर्थिक और राजनीतिक जीवन में अनेक परिवर्तन हुए। इनमें से कुछ परिवर्तनों ने समकालीन समाज पर अपना प्रभाव छोड़ा। उदाहरणत: वन क्षेत्रों में कृषि का विस्तार हुआ जिससे वहा रहने वाले लोगों की जीवनशैली में परिवर्तन हुआ शिल्प विशेषज्ञों के एक विशिष्ट सामाजिक समूह का उदय हुआ तथा संपत्ति के असमान वितरण ने सामाजिक विषमताओं को अधिक प्रखर बनाया। इतिहासकार इन सब प्रक्रियाओं को समझने के लिए प्राय: साहित्यिक परंपराओं का उपयोग करते हैं। कुछ ग्रंथ सामाजिक व्यवहार के...
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सैंधव लोगो की धार्मिक मान्यताएँ

भारतीय इतिहास के प्राचीनतम वैभव की परिकल्पना को तब जोरदार बल मिला जब १९२१ मे दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा की खुदाई की गई। 2500 ई. पू.. के लगभग भारत के उत्तरी पश्चिमी भाग से एक ऐसी विकसित सभ्यता का ज्ञान 1921 ई. में लोगों के समक्ष हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नामक दो केन्द्रों की खुदाई से आना आरम्भ हुआ जिसकी तुलना में तत्कालीन विश्व की प्राचीनतम अन्य सभ्यताएं अपने विकास के क्रम में बहुत पीछे छूट जाती है।...
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