Monday 7 September 2015

सिद्ध साहित्य


सिद्ध साहित्य के इतिहास में चौरासी सिद्धों का उल्लेख मिलता है। सिद्धों ने बौद्ध धर्म के वज्रयान तत्व का प्रचार करने के लिये, जो साहित्य जनभाषा मे लिखा, वह हिन्दी के सिद्ध साहित्य की सीमा मे आता है
सिद्ध सरहपा (सरहपाद, सरोजवज्र, राहुल भ्रद्र) से सिद्ध सम्प्रदाय की शुरुआत मानी जाती है। यह पहले सिद्ध योगी थे। जाति से यह ब्राह्मण थे। राहुल सांकृत्यायन ने इनका जन्मकाल 769 ई. का माना, जिससे सभी विद्वान सहमत हैं। इनके द्वारा रचित बत्तीस ग्रंथ बताए जाते हैं जिनमे से ‘दोहाकोश’ हिन्दी की रचनाओं मे प्रसिद्ध है। इन्होने पाखण्ड और आडम्बर का विरोध किया तथा गुरू सेवा को महत्व दिया।
इनके बाद इनकी परम्परा को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख सिद्ध हुए हैं क्रमश: इस प्रकार हैं :-
शबरपा : इनका जन्म 780 ई. में हुआ। यह क्षत्रिय थे। सरहपा से इन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। ‘चर्यापद’ इनकी प्रसिद्ध पुस्तक है। इनकी कविता का उदाहरण देखिये-
हेरि ये मेरि तइला बाड़ी खसमे समतुला
षुकड़ये सेरे कपासु फ़ुटिला।
तइला वाड़िर पासेर जोहणा वाड़ि ताएला
फ़िटेली अंधारि रे आकासु फ़ुलिआ॥


लुइपा : ये राजा धर्मपाल के राज्यकाल में कायस्थ परिवार में जन्मे थे। शबरपा ने इन्हें अपना शिष्य माना था। चौरासी सिद्धों में इनका सबसे ऊँचा स्थान माना जाता है। उड़ीसा के तत्कालीन राजा और मंत्री इनके शिष्य हो गए थे।

डोम्भिया : मगध के क्षत्रिय वंश में जन्मे डोम्भिया ने विरूपा से दीक्षा ग्रहण की थी। इनका जन्मकाल 840 ई. रहा। इनके द्वारा इक्कीस ग्रंथों की रचना की गई, जिनमें ‘डोम्बि-गीतिका’, ‘योगाचर्या’ और ‘अक्षरद्विकोपदेश’ प्रमुख हैं।

कण्हपा : इनका जन्म ब्राह्मण वंश में 820 ई. में हुआ था। यह कर्नाटक के थे, लेकिन बिहार के सोमपुरी स्थान पर रहते थे। जालंधरपा को इन्होंने अपना गुरु बनाया था। इनके लिखे चौहत्तर ग्रंथ बताए जाते हैं। यह पौराणिक रूढि़यों और उनमें फैले भ्रमों के खिलाफ थे।

कुक्कुरिपा : कपिलवस्तु के ब्राह्मण कुल में इनका जन्म हुआ। चर्पटीया इनके गुरु थे। इनके द्वारा रचित 16 ग्रंथ माने गए हैं।

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