Monday 7 September 2015

जैन साहित्य की रास परक रचनायें

भारत के पश्चिमीभाग मे जैन साधुओ ने अपने मत का प्रचार हिन्दी कविता के माध्यम से किया । इन्होंने“रास” को एक प्रभाव्शाली रचनाशैली का रूप दिया । जैन तीर्थंकरो के जीवन चरित तथावैष्णव अवतारों की कथायें जैन-आदर्शो के आवरण मे‘रास‘ नाम से पद्यबद्ध की गयी ।अतः जैन साहित्य का सबसे प्रभावशाली रूप ‘रास‘ग्रंथ बन गये । वीरगाथाओं मे रास कोही रासो कहा गया किन्तु उनकी विषय भूमि जैन ग्रंथो से भिन्न हो गई । आदिकाल मे रचितप्रमुख हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है–
  • १. उपदेशरसायन रास- यह अपभ्रंश की रचना है एवं गुर्जर प्रदेश में लिखी गई हैं।इसके रचयिता श्री जिनदत्त सूरि हैं। कवि की एक और कृत्ति “कालस्वरुपकुलक‘ १२०० वि.के आसपासकी रही होंगी। यह “अपभ्रंश काव्य त्रयी‘ मेंप्रकाशित है और दूसरा डॉ.दशरथ ओझाऔर डॉ. दशरथ शर्मा के सम्पादन में रास और रासान्वयी काव्य में प्रकाशितकिया गया है।
  • २. भरतेश्वरबाहुबलि रास- शालिभद्र सूरि द्वारा लिखित इस रचना के दो संस्करणमिलते हैं। पहला प्राच्य विद्या मन्दिर बड़ौदा से प्रकाशित किया गया हैतथा दूसरा “रास‘ और रासान्वयीकाव्य‘ में प्रकाशित हुआ है। कृति में रचनाकाल सं. १२३१वि.दिया हुआ है। इसकी छन्द संख्या २०३ है। इसमें जैन तीर्थकरॠषभदेव के पुत्रोंभरतेश्वर औरबाहुबलि में राजगद्दी के लिए हुए संघर्ष का वण्रनहै।
  • ३. बुद्धिरास‘ यह सं. १२४१ के आसपास की रचना है। इसके रचयित शालिभद्रसूरिहैं। कुछ छन्द संख्या ६३ है। यह उपदेश परक रचना है। यह भी“रास और रासान्वयी काव्य‘ मेंप्रकाशित है।
  • ४. जीवदयारास-यह रचना जालोर पश्चिमी राजस्थान की है। “रास और रासान्वयी काव्यमें संकलित है। इसके रचयिता कवि आसगु हैं। सं. १२५७ वि. में रचित इसरचना में कुल५३ छन्दहैं।
  • ५. चन्दरवाला रास-जीवदया रास के रचनाकार आसगु की यह दूसरी रचना है। यह भी १२५७वि. के आसपास की रचना है। यह श्री अगर चन्द नाहटा द्वारा सम्पादितराजस्थानभारतीमें प्रकाशितहै।
  • ६. रेवंतगिरि रास‘ यह सोरठप्रदेश की रचना है। रचनाकार श्री विजय सेन सूरि हैं।यह सं.१२८८ वि. के आसपास की रचना मानी जाती है। यह “प्राचीन गुर्जर काव्य‘ मेंप्रकाशितहै।
  • ७. नेतिजिणद रास या आबू रास- यह गुर्जर प्रदेश की रचना है। रचनाकार पाल्हण एवंरचना काल सं. १२०९ वि. है।
  • ८. नेमिनाथरास- इसके रचयिता सुमति गण माने जाते हैं। कवि की एक अन्य कृति गणधरसार्ध शतक वृत्ति सं. १२९५ की है। अतः यह रचना इस तिथि के आसपास कीरहीहोगी।
  • ९. गयसुकमाल रास- यह रचना दो संस्करणों में मिली है। जिनके आधर पर अनुमानतःइसकी रचना तिथि लगभग सं. १३०० वि. मानी गई है। इसके रचनाकार देल्हणिहै। श्रीअगरचन्द नाहटाद्वारा सम्पादित “राजस्थान भारती‘पत्रिकामें प्रकाशित है तथादूसरा संस्करण “रास और रासान्वयी‘ काव्यमें है।
  • १०. सप्तक्षेत्रिसु रास- यह रचना गुर्जर प्रदेश की है। तथा इसका रचना काल सं.१३२७ वि. माना जाता है।
  • ११. पेथड़रास- यह गुर्जर प्रदेश की रचना है। रचना मंडलीकहैं।
  • १२. कच्छूलिरास- यह रचना भी गुर्जर प्रदेश के अन्तर्गत है। रचना की तिथि सं.१३६३ वि. मानी जाती है।
  • १३. समरा रास– यह अम्बदेव सूरि की रचना है। इसमें सं. १३६१ तक की घटनाओं काउल्लेख होने से इसका रचनाकाल सं. १३७१ के बाद माना गया है। यह पाटणगुजरात की रचनाहै।
  • १४. पं पडवरास- शालिभद्र सूरि द्वारा रचित यह कृति सं. १४१० की रचना है। यह भीगुर्जर की रचना है। इसमें विभिन्न छन्दों की ७९५ पंक्तियाहैं।
  • १५. गौतमस्वामी रास- यह सं. १४१२ की रचना है। इसके रचनाकार विनय प्रभुउपाध्यायहै।
  • १६. कुमारपाल रास- यह गुर्जर प्रदेश की रचना है। रचनाकाल सं. १४३५ के लगभग काहै। इसके रचनाकार देवप्रभ हैं।
  • १७. कलिकालरास- इसके रचयिता राजस्थान निवासी हीरानन्द सूरि हैं। यह सं. १४८६की रचना है।
  • १८. श्रावकाचार- देवसेन नामकप्रसिद्ध जैन आचार्य ने ९३३ ई. मे इस काव्य की रचना की । इसके २५० दोहो मे श्रावकधर्म का प्रतिपादन किया है।

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