अवधी भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है, जो असल में हिन्दी की एक बोली है । तुलसीदास कृत रामचरितमानस एवं मलिक मुहम्मद जायसी कृत पद्मावत सहित कई प्रमुख ग्रंथ इसी बोली की देन है। इसका केन्द्र फैजाबाद (उ0प्र0) है।फैजाबाद – लखनऊ से 120 कि0मी0 की दूरी पर पूरब में है । फ़ैज़ाबाद भारतवर्ष के उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश का एक नगर है। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, पं महावीर प्रसाद द्विवेदी,रामचंद्र शुक्ल , राममनोहर लोहिया,कुंवर नारायण की यह जन्मभूमि है ।यहीं डां0 राम प्रकाश द्विवेदी का भी जन्म (खन्डासा के जंगलॉ मॅ) हुआ था। वे प्रसारण पत्रकारिता के जाने-माने शिक्षक हैं।ओर तुलसी की जीवन दृष्टि से गहरे प्रभावित भी। तुलसीदास कृत रामचरितमानस की मुख्य संवेदना भक्ति है।
तुलसी रचित ग्रंथों में अवधी भाषा का ही प्रभुत्व है जो गोण्डा, बहराइच या घाघरा के उत्तर में बोली जाती है । अवधी भाषा का क्षेत्र बहुत बड़ा है किन्तु भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली अवधी में अंतर है । सीतापुर, लखीमपुर, लखनउ की अवधी, रायबरेली, उन्नाव, प्रतापगढ, सुल्तानपुर की अवधी, बांदा, हमीरपुर, इलाहाबाद, फतेहपुर की अवधी बोलियों में बड़ा अन्तर है । बांदा, हमीरपुर, इलाहाबाद, फतेहपुर की अवधी बोलियों में बड़ा अन्तर है । बांदा, हमीरपुर, इलाहाबाद, फतेहपुर की अवधी में बुंदेलखंडी भाषा के अनेकानेक शब्द होते हैं । तुलसीदास के ग्रन्थों में बुंदेलखंडी भाषा के शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है । डा. भगवती सिंह ने अपने शोध ग्रन्थ में लिखा है कि तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में उन शब्दों का प्रयोग किया है जो मएलगिन बृजम के उत्तर अवधी भाषा में बोले जाते हैं । सारा रामचरित मानस तो ऐसी ही भाषा के शब्दों से भरा पड़ा है । मानस की हर चौपाई, ई तथा उ से अन्त होती है ।
जायसी का पद्मावत भी दोहा, चौपाईयों में अवधी भाषा में है परन्तु इसमें चौपाईयों का अन्त सीधे शब्दों से हुआ है । ऐसी अवधी भाषा, रायबरेली, उन्नाव, प्रतापगढ़ आदि जनपदों में बोली जाती है । लेखक या कवि पर उसकी आंचलिक भाषा का प्रभाव बना रहता है अत:वह जाने अनजाने अपनी आंचलिक भाषा के शब्दों का प्रयोग अपनी रचनाओं में कर लेता है । तुलसीदास भी इससे बचे नहीं रह सके और उन्होंने अपने ग्रन्थों में गोण्डा, बहराइच और घाघरा के उत्तर में बोली जाने वाली अवधी शब्दों का प्रयोग किया है । यदि तुलसीदास इस क्षेत्र में न होते तो वे इस क्षेत्र में बोली जाने वाली अवधी के इतने सटीक शब्दों का प्रयोग न कर पाते । लेखक कवि अथवा रचनाकर पर अपने परिवेश का प्रभाव पड़ना भी सर्वमान्य है । अस्तु तुलसीदास पर बांदा की बुंदेलखंडी अथवा एटा की बृजभाषा का प्रभाव नहीं पड़ा । उन पर प्रभावी है गोण्डा, बहराइच अथवा घाघरा के उत्तर की अवधी भाषा ।
घाघरा के उत्तर गोंडा, बहराइच में बोली जाने वाली अवधी की मुख्य पहिचान यह है कि कभी कोई शब्द सीधा नहीं बोला जाता है । जैसे खाना को खनवा, पानी को पनिया, गधे को गधोउ, घोड़े को घोड़उ घी को घिउ, भोजन को जेउना, सामूहिक भोजन को जयौनार, खाने के बाद मुंह धोने को अचवाना, लेटने को पौड़ना, सोने को सुतना, भाई को भयल, बहन को बहिनी, माँ को महतारी, बॉके जवान को छयल, लकड़ी के पाटे को पिढ़ई, बेलन को बिलना, ननिहाल को ननियाउर, निधड़क को निधरक, कांवारि, लहकौरि कलेवा आदि अनेक शब्द है जो तुलसी ग्रन्थों में बाहुल्य के साथ है । मखटानाम शब्द का प्रयोग प्राय: जूझना के अर्थ में किया जाता है लेकिन गोण्डा बहराइच में मखटानाम बहुत दिन तक रहने के अर्थ में बोला जाता है । तुलसीदास ने इस शब्द का प्रयोग गोंडा की भाषा में ममसहज एकाकिन्ह के भवन कबहूँ कि नारि खटाहिमम किया है ।
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